व्यापमं के शहीद आज तक के खोजी पत्रकार अक्षय सिंह जी को नमन

किसी भी राष्ट्र, सभ्यता या समाज में पारदर्शिता रखने हेतु ज़रूरी होता है एक ऐसा तबका, व्यक्ति या संस्थान जो सवाल पूछे। जो सही और गलत के बीच के फर्क को बनाये रखने के लिए समय - समय पर एक रेखा खींचता रहे, ज़िम्मेदारो को उनकी ज़िम्मेदारियों से अवगत करता रहे, प्रश्न उठता रहे, जिन मज़लूमों की आवाज़ें सुनाई नहीं देती हों उनकी आवाज़ बन साथी की बात करता रहे। यह ज़िम्मा, हमारे लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ "मीडिया' का है। एक पत्रकार इस समाज में उस दर्पण काम करता है, जो हर किस्म की राजनैतिक धूल वा विचारधाराओं की धुंध से विमुक्त होकर किसी मुद्दे को उसी शक्ल में पेश करता है जिस शक्ल में वह है, नाकि उस शक्ल में की जैसी वह किसी सत्ता या विचारधारा के अनुकूल दिखना चाहती हो। अब यहाँ यह सोचना की ऐसी पत्रकारिता शायद किताबों व लेखों में ही होती होगी शायद अपने - अपने व्यक्तिगत स्तर पर सही हो, मगर असल पत्रकारिता करने वाले निर्भय - निडर व सच बोलने वाले पत्रकार हमारे इस देश में पहले हुए हैं और आगे भी होते रहेंगे सारी दुनिया मुझे व्यापम घोटाले के Whistleblower के रूप में भी जानती है। मेने अभी तक के अपने सफर में पत्रकारों और पत्रकारिता को बेहद करीब से देखा है, और ये पत्रकार, मीडिया और अख़बार ही थे जिनकी वजह से मेरी आवाज़ को सुना गया और मैं एक लड़ाई का आरम्भ कर पाया। वह लड़ाई जिसे में आज भी लड़ रहा हूँ, और न्याय न मिलने तक लड़ता रहूँगा।  

 

मेरी इस लड़ाई में मेने कई पत्रकारों को, अख़बारों को, मीडिया चैनल्स को अपने इंटरव्यू दिए, अपनी बातें कहीं, सच को सामने रखा और झूठ को सिरे से नाकारा। आज मुझे ऐसी ही एक मुलाकात याद आती है जो मेने अक्षय सिंह जी के साथ की थी। 'अक्षय सिंह' व्यापम घोटाले की जाँच करने वाले 'आजतक' के वह टीवी जौर्नालिस्ट थे, जिन्होंने पहली बार मेरे साथ गजराराजा मेडिकल कॉलेज में हुई बर्बरता को अपनी आवाज़ के माध्यम से दुनिया के सामने रखा था। एक ऐसे पत्रकार, जिनसे मिलने के बाद मुझे यह विश्वास हो गया था की हमारे इस सिस्टम में कुछ ऐसे लोग हैं जो वाकई सत्य की बात करते हैं, जो अपने व्यावसायिक कर्म को सम्पूर्ण आत्मसमर्पण व सच्चाई के साथ निभाते हैं। आज 4 जुलाई है, आज ही के दिन ठीक आठ साल पहले 2015 में झाबुआ में एक घर में अक्षय जी ने ने आखिरी सांस ली, अंतिम लड़ाई लड़ी थी और पत्रकारिता करते - करते वह पंच तत्वों में वलीन हो गए थे। मुझे वह समय भली भांति याद है, जब 01 जुलाई को उनका जन्मदिवस था। साल 2015 मैं उन दिनों वह मेरे ही साथ थे। जहाँ उन्होंने मेरे साथ इस खूनी घोटाले की पडताल को जाना, वह मुझ से यह बार - बार कहते थे पंडित जी आपको डरना नहीं अब मैं आपके साथ हूं और हमेशा रहूंगा और मुझे इस पूरे घोटाले से जुड़े कुछ ऐसे तथ्य वा बातें मुलूम हुईं हैं जो जनता के सामने आनी चाहियें और लोकतंत्र की गरिमा व सिद्धांत बना रहना चाहिए। उन्होंने मुझसे कहा था की लोग अज्ञात रहस्य्मयी मौतें मर रहे हैं, वह लोग जो तुम्हारी और मेरी तरह इस पूरे मामले से जुड़े हुए हैं। 

तीन दिन की मेरी और उनकी मुलाकात के बाद वे 3 जुलाई 2015 को इंदौर झाबुआ के लिए निकल गए और बोले मैं अब नम्रता डामोर के घर झाबुआ जा रहा हूँ। उसके घर वालो से बात करूँगा और इस बात का पता लगाऊंगा की आखिर कैसे एक लड़की जिसका नाम घोटाले से जुड़ता है और वह अचानक सन्धिग्त अवस्था में मृत पायी जाती है और उसका शव रेल की पटरियों पर पड़ा मिलता है। उनसे उन दिनों मिलने के बाद मुझे सच के लिए लड़ने वाले एक सच्चे पत्रकार की अहमियत समझ आयी थी और यह समझ आया थी की अगर हम सच्चाई से चाहें तो इस देश में क्या कुछ नहीं हो सकता है। उस दिन उनके लिए व हर पत्रकार के लिए मरे मन में एक सम्मान का भाव उत्पंन हुआ था। एक ऐसा भाव जो मेरे अन्तर्मन से कभी खत्म नहीं हो सकता। वह नम्रता के घर पहुंचे, वहां मौजूद घर वालो से नम्रता के पिता से बात की, इस बीच वह मेरे साथ भी जुड़े हुए थे। हमारी बात हो रही थी, के अचानक मुझे मालूम होता है की नम्रता के घर के बाहर वह अपने मुँह में झाग भर के बेहोश हो गए हैं। अस्पताल पहुंचे तो दिल का दौरा बताया गया और उनकी मौत को प्राकर्तिक बता कर पोस्ट मॉर्टम की फाइल पर दिल का दौरा लिख लाल फीते से बांध कर रख दिया गया। कई नेताओं ने बयान दिए, संवेदनाएं व्यक्त की गयीं, जाँच की मांग की गई, देश से लेकर विदेश तक के अख़बारों ने इस मामले को उठाया। किसी ने कहा की यह तो किसी के भी साथ हो सकता है, मृत्यु कैसे भी कभी भी किसी को भी अपने दामन में समा सकती है। मगर मुझे इस वाक्य पर आज तक विश्वास नहीं हुआ, आखिर मुझसे भला मौत को कोई क्या समझ सकता है। मैं मेरी माँ और मेरे भाई को खो चूका हूँ और फिर अक्षय जैसे एक अच्छे मित्र व साथी को भी गावं चुका हूँ। मगर अक्षय जी का इस तरह से हम सबको छोड़ के जाने वाली बात, मैं कैसे मान लूँ। एक घोटाला जो कई जनों को अनजान अवस्था में ले चूका हो, एक घोटाला जिससे कुछ ऐसे लोग जुड़ें हों जिनके मानव होने पर खुद उन्हें यकीन न हो। तो आखिर कैसे एक पत्रकार यूँ दिल के दौरे से अचानक से मर सकता है। आज तक इस मामले मैं कोई पुरज़ोर सबूत नहीं मिला, कोई मेडिकल व पुलिस जाँच रिपोर्ट सामने नहीं आई जो यह कह सके की उनकी मृत्यु प्राकर्तिक थी या एक सोची समझी हत्या।

 

जी हाँ, हत्या!, जब - जब सच बोलने वाले, लिखने वाले या खोजने वाले किसी व्यक्ति की हत्या होगी। उस - उस दिन लोकतंत्र एक मौत मरेगा। तो आज के दिन, अक्षय जी की पुण्य तिथि पर, मैं उनके अंदर के मनुष्य को, उस निडर व निष्पक्ष पत्रकार को, और एक साथी - मित्र को नमन करता हूँ। वह अब एक बेहतर स्थान पर हैं, उनकी आत्मा उनके छोटे व अटल जीवनी में किये गए कृत्यों से अमर है। वह हमेशा मेरे ह्रदय में रहेंगे,  उनके वे शव्द सदाब मुझे याद रहेंगे एक शॉट हमारा भी लेलो पंडित जी के साथ, उनकी वाणी के शब्द हमेशा मुझे सच की राह पर चलने व सत्य के लिए लड़ने के लिए प्रेरित करते रहेंगे, अक्षय सिंह हमेशा मेरे साथ रहेंगे। 

 

अंत में जिस घोटाले को उजागर करते हुए अमर होने वाले अक्षय जी ने प्राण त्यागे, जिस ख़ूनी घोटाले न जाने कितने बेगुनाहों की जान ली, जिस घोटाले ने एक देश को पूर्णतः शर्मशार किया, वह आज भी नहीं सुलझा है, वह आज भी कागज़ों वकीलों में उलझा हुआ है। इसीलिए जब तक इस घोटाले का सम्पूर्ण सत्य बहार नहीं आता, बेगुनाहों को न्याय नहीं मिलता मैं अपनी यह लड़ाई लड़ता रहूँगा। 

 

ईश्वर अक्षय जी की आत्मा को शांति दे। 

।। ॐ शांति।।

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